भोपाल । 50 लाख से अधिक किसानों सहकारी समितियों के चुनाव बार-बार टलने के बाद भाजपा ने समितियों को सुचारू रूप से चलाने के लिए फॉर्मूला तैयार कर लिया है। इस फॉर्मूले के तहत अब सहकारी समितियों में प्रशासकों की जगह भाजपा नेताओं को पदस्थ किया जाएगा। इसको लेकर गतदिनों भाजपा कार्यालय में प्रदेशभर से आए सहकारी नेताओं ने प्रदेश संगठन के साथ बैठक कर मसौदा तैयार किया है। गौरतलब है कि प्रदेश में सहकारी समितियों के चुनाव लंबे समय से नहीं हो पा रहे हैं। हाई कोर्ट के निर्देश पर इसकी प्रक्रिया प्रारंभ हुई, लेकिन सदस्य सूची ही नहीं बन पाई, इसलिए चुनाव फिर टल गए हैं। खरीफ फसलों की बोवनी में किसानों के व्यस्त होने के कारण कार्य प्रभावित हुआ। उधर, हाईकोर्ट के दबाव में सरकार चाहती है कि जल्द से जल्द चुनाव कराए जाएं। इसके तहत निर्वाचन की बजाय संचालक मंडलों के सदस्य नियुक्त करने का निर्णय लिया गया है।
उल्लेखनीय है कि प्रदेश में वर्ष 2013 में प्राथमिक कृषि साख सहकारी समिति, जिला सहकारी केंद्रीय बैंक और अपेक्स बैंक के चुनाव हुए थे। इसके बाद से प्रशासक ही पदस्थ हैं। सहकारिता चुनाव को लेकर सरकार पर अदालत का दबाव बना हुआ है। हाईकोर्ट के दबाव में सरकार ने जुलाई से सितंबर तक चार चरणों में चुनाव का कार्यक्रम भी घोषित किया था। मगर मानसून को आगे कर चुनाव चुपचाप से दबा दिए गए। सरकार को परेशानी से बाहर निकालने का जिम्मा संगठन ने उठाया है। प्रदेश में कृषि सहित सभी क्षेत्रों में करीब 55 हजार सहकारी समितियां हैं। जिनमें 2018 से ही प्रशासक ही काम संभाल रहे हैं। जानकारी के अनुसार गतदिनों भाजपा प्रदेश कार्यालय में प्रदेश भर से बुलाए गए 15 सहकारिता नेताओं के साथ सीएम मोहन यादव, भाजपा प्रदेशाध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा, सहकारिता मंत्री विश्वास सारंग व प्रदेश संगठन के तमाम वरिष्ठ नेताओं ने चुनावों के विकल्प पर मंथन किया है। तीन स्तरों पर हुई बैठकों में पहले भाजपा सहकारिता प्रकोष्ठ के वर्तमान व पुराने नेताओं के साथ सीएम व प्रदेश संगठन ने चर्चा की। फिर सभी ने सहकारिता मंत्री ने प्रकोष्ठ के नेताओं के साथ विकल्पों पर मंथन किया। अंत में जिलाध्यक्षों, प्रदेश पदाधिकारियों की मौजूदगी में सीएम यादव व प्रदेशाध्यक्ष शर्मा ने लंबी चर्चा कर जल्द से जल्द सभी समितियों व संचालक मंडलों में नियुक्ति करने पर सहमति बनाई।

 प्रशासकों की रवानगी की जाएगी
छह साल से अटके सहकारिता चुनावों के लिए भाजपा ने जमीन बनाना शुरू कर दी है। इसके लिए सबसे पहले सहकारी समितियों से प्रशासकों की रवानगी की जाएगी। इन सरकारी प्रशासकों की जगह भाजपा के सहकारिता नेता पदस्थ किए जाएंगे। संगठन ने सभी जिलों से 3 से 5 नामों की पैनल मांगी है। पैनल मिलते ही नियुक्तियां शुरू हो जाएंगी। सभी समितियों में अपने सदस्य नियुक्त करने के साथ ही भाजपा प्रदेश भर में सदस्यता अभियान चलाकर समितियों को जिंदा करने का काम भी करेगी। ताकि चुनाव होने पर पार्टी का वर्चस्व कम न हो सके। ये नियुक्तियां होते ही सरकारी अधिकारी प्रशासक जिम्मेदारी से मुक्त हो जाएंगे। भाजपा के सहकारिता नेता समितियों की कमान संभालते ही गांव स्तर तक समितियों को दोबारा जिंदा करने का काम करेंगे। सरकार द्वारा प्रशासक बनाए जाने वाले भाजपा नेताओं को तीन टास्क दिए जाएंगे। इनमें प्रमुख है सदस्यता अभियान, समितियों का परिसीमन, डिफाल्टर समितियों के सदस्यों से कर्ज की वसूली करना और फिर समितियों के चुनाव कराना। सरकार द्वारा नियुक्त किए जाने वाले सदस्यों को छह माह के अंदर खुद भी चुनाव जीतना होगा और अपनी समितियों के भी चुनाव कराना होंगे। प्रदेश में नवंबर के बाद चुनाव प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। ताकि उसके बाद छह माह में प्रदेश स्तर तक चुनाव पूर्ण हो जाएं।

अभियान चलाकर नए सदस्य भी बनाए जाएंगे।
प्रदेश की लगभग 60 फीसदी समितियां डिफाल्टर हो चुकी हैं। प्रशासकों ने डिफाल्टर सदस्यों से वसूली पर भी ध्यान नहीं दिया। समितियां डिफाल्टर होने से नए किसानों को भी नहीं जुड़े। सबसे अधिक नुकसान वर्ष 2020 में कांग्रेस सरकार गिरने के बाद किसानों को उठाना पड़ा। शिवराज सरकार द्वारा जीरो प्रतिशत ब्याज पर दिए जा रहे ऋण का लाभ किसानों को नहीं मिल सका। दूसरी तरफ कांग्रेस की कर्ज माफी योजना के कारण लाखों किसान डिफाल्टर हो गए। इससे वे भी आगे कर्ज नहीं ले सके। भाजपा सहकारिता प्रकोष्ठ के प्रदेश संयोजक मोहनलाल राठौर का कहना है कि सत्ता और संगठन की संयुक्त बैठक में सहकारिता चुनावों की तैयारी को लेकर महत्वपूर्ण चर्चा हुई है। चुनावों का आधार तैयार करने जल्द ही प्रशासकों की जगह संगठन के सक्रिय कार्यकर्ताओं को मौका दिया जाएगा। जिलों से पैनल मिलते ही हर समिति में प्रशासक नियुक्त कर दिए जाएंगे। अभियान चलाकर नए सदस्य भी बनाए जाएंगे। ताकि सरकार की योजनाओं का लाभ अधिक से अधिक किसानों को मिल सके।

लगातार टर टल रहे हैं चुनाव
प्रदेश की सहकारी समितियों से लगभग 50 लाख किसान जुड़े हुए हैं। प्रदेश में 4,534 प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियां हैं। इनके चुनाव वर्ष 2013 में हुए थे। इनके संचालक मंडल का कार्यकाल वर्ष 2018 तक था। इसके बाद सरकार ने चुनाव नहीं कराए, जिसके कारण जिला सहकारी केंद्रीय बैंक और अपेक्स बैंक के संचालक मंडल के भी चुनाव नहीं हुए। जबकि, प्रत्येक 5 वर्ष में चुनाव कराए जाने का प्रावधान है। चुनाव न होने की सूरत में पहले 6 माह और फिर अधिकतम 1 वर्ष के लिए प्रशासक नियुक्त किया जा सकता है, लेकिन यह अवधि भी बीत चुकी है। इसको लेकर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने सरकार को प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों के चुनाव कराने के निर्देश दिए थे। राज्य सहकारी निर्वाचन प्राधिकारी ने 26 जून से नौ सितंबर तक चार चरण में चुनाव का कार्यक्रम जारी किया था। जिसमें आठ, 11, 28 अगस्त और 4 सितंबर को मतदान प्रस्तावित था। सूत्रों का कहना है कि अभी सरकार चुनाव नहीं कराना चाहती है इसलिए इस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। सदस्यता सूची तैयार न होने और खरीफ फसलों की बोवनी में किसानों की व्यस्तता का हवाला देकर चुनाव टाल दिए गए हैं।