भोपाल ।  छत्तीसगढ़ के आदिवासी नेता नंदकुमार साय के भाजपा छोड़ने का प्रभाव मध्य प्रदेश की राजनीति पर भी पड़ेगा। साय तब भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं, जब छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश का ही अंग था। साय के कांग्रेस का दामन थाम लेने से मध्य प्रदेश में भाजपा की आदिवासियों को साधने की कोशिश को धक्का पहुंचा है। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में आदिवासियों के मुंह मोड़ लेने के कारण ही मध्य प्रदेश सहित छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार नहीं बन पाई थी। वे नौ नवंबर 1997 से 11 जुलाई 2000 तक संयुक्त मप्र में भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष थे। छत्तीसगढ़ के गठन के बाद से भाजपा में वे उपेक्षित चल रहे थे। बता दें कि 2013 में भाजपा के पास 31 आदिवासी सीटें थीं, लेकिन 2018 में 16 ही बचीं। 230 सदस्यीय मध्य प्रदेश विधानसभा में आदिवासियों के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं। वहीं, लगभग 30 सामान्य सीटें ऐसी हैं, जहां आदिवासी वोट बैंक हार-जीत का निर्णय करता है। आमतौर पर मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ दोनों राज्यों के आदिवासी वोट बैंक का रुझान एक जैसा रहता है। 2018 के चुनाव में छत्तीसगढ़ में आदिवासियों ने भाजपा के बजाए कांग्रेस को बेहतर समझा तो मध्य प्रदेश में भी आदिवासियों ने कांग्रेस का साथ दिया। दोनों जगह सरकार बदल गई। अब इस वर्ष मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में फिर आदिवासी समुदाय केंद्र में होगा। इसके स्पष्ट संकेत भाजपा, कांग्रेस और जयस की तैयारियों से मिल रहे हैं। आदिवासी समुदाय का रुझान ही तय करेगा कि सत्ता की चाबी किसके हाथ होगी। इन समीकरणों के बीच नंदकुमार साय के कांग्रेस में जाने से मप्र में भाजपा के प्रयासों को झटका लगा है।

मप्र में पिछले कई महीनों से भाजपा आदिवासी समुदाय को साधने के लिए उनके हित में एक के बाद एक निर्णय ले रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मध्य प्रदेश पंचायत अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार अधिनियम (पेसा) के नए नियम लागू कर मास्टर स्ट्रोक चला है। शिवराज सरकार गरीब कल्याणकारी योजनाओं को आदिवासी क्षेत्रों पर फोकस करते हुए गढ़ रही है। जैसे, राशन आपके द्वार योजना, जिसमें आदिवासी गांवों तक राशन पहुंचाया जा रहा है। इसके लिए वाहन भी इसी वर्ग के युवाओं को दिए गए हैं। प्रधानमंत्री आवास, निश्शुल्क राशन, रोजगार दिवस, घरों तक नल से पानी पहुंचाने सहित कई योजनाओं पर आदिवासी क्षेत्रों में जमकर काम हो रहा है। पर, आदिवासी नेताओं की भाजपा से बेरुखी के चलते प्रयासों पर पानी फिरता दिख रहा है। कुछ दिन पहले ही भाजपा नेता पूर्व सांसद मकन सिंह सोलंकी ने कांग्रेस का दामन थाम लिया। इससे निमाड़ में भाजपा को तगड़ा झटका लगा। हालांकि, भाजपा प्रवक्ता डा. हितेष वाजपेयी इस बात से इनकार करते हैं कि साय के पार्टी छोड़ने का असर मप्र पर पड़ेगा। वे कहते हैं कि मप्र में आदिवासी इलाकों में भाजपा बहुत मजबूत है।