कांग्रेस छोडऩे वाले दो विधायकों ने नहीं दिया इस्तीफा


भोपाल । जिन तीन विधायकों ने लोकसभा चुनाव के बीच कांग्रेस का साथ छोडक़र भाजपा का झंडा थाम लिया है। उनमें से दो विधायक ऐसे हैं, जिनके द्वारा अब तक विधायक पद से इस्तीफा नही दिया गया है और न ही अभी दिए जाने की संभावना जाताई जा रही है। इसकी वजह से माना जा रहा है कि इन दोनों ही विधायकों का मामला लोकसभा चुनाव के बाद पूरी तरह से विधानसभा अध्यक्ष के पाले में जा सकता है।
दरअसल बीते 38 दिन में एक-एक कर कांग्रेस के 3 विधायक पार्टी छोडक़र भाजपा में आ चुके हैं। इनमें से महज एक कांग्रेस विधायक ने ही दलबदल के साथ विधायक पद से इस्तीफा दिया है। जबकि दो विधायकों ने पार्टी छोडऩे के बाद भी विधायक पद से इस्तीफा नहीं दिया है। दल बदल कानून के तहत दोनों विधायकों की सदस्यता जा सकती है। यदि ये दोनों विधायक खुद इस्तीफा नहीं देते हैं, तो कांग्रेस के लिए इनसे इस्तीफा ले पाना आसान नहीं होगा। कांग्रेस की शिकायत के बाद इस बारे में विधानसभा अध्यक्ष ही निर्णय लेंगे। संविधान के जानकारों का कहना है कि किसी दल बदलने वाले विधायक द्वारा स्वयं इस्तीफा नहीं देने की स्थिति में नेता प्रतिपक्ष या किसी कांग्रेस विधायक को प्रमाणों के साथ स्पीकर को संबंधित विधायकों द्वारा पार्टी छोडऩे की शिकायत करना होती है। इसके लिए उन्हें दल बदल के दौरान के फोटोग्राफ्स, भाषण, वीडियो फुटेज, उपलब्ध हो तो सदस्यता का प्रमाण पत्र आदि दस्तावेज शिकायत के साथ देना होते हैं। फिर विधानसभा की ओर से संबंधित दल के अध्यक्ष से पूछा जाता है कि क्या इन्होंने आपकी पार्टी की सदस्यता ली है? संबधित की ओर से हां या न में जवाब दिया जाता है। इस जवाब के बाद जो स्थिति बनती है, उसके आधार पर स्पीकर आगे फैसला करते हैं।

अमरवाड़ा में उप चुनाव होना तय


अमरवाड़ा से एमएलए कमलेश शाह ने गत 29 मार्च की कांग्रेस छोडकऱ भाजपा ज्वाइन कर ली थी और उसी दिन विधानसभा सचिवालय को अपना इस्तीफा भेज दिया था। विधायक शाह के इस्तीफा देने के बाद विधानसभा सचिवालय ने यह सीट रिक्त घोषित कर यहां छह महीने के अंदर उप चुनाव कराने की सूचना चुनाव आयोग को भेज दी थी। इसके बाद 30 अप्रैल को विजयपुर से कांग्रेस विधायक रामनिवास रावत ने और 5 मई को बीना से कांग्रेस विधायक निर्मला सप्रे ने पार्टी छोडकऱ भाजपा ज्वाइन कर ली थी। दोनों विधायकों ने अभी तक पद से इस्तीफा नहीं दिया है। इस्तीफे के सवाल पर निर्मला सप्रे का कहना है कि जब सदन चलता है, तब अध्यक्ष को इस्तीफा देना पड़ता है। बाकी पार्टी जैसा निर्देश देगी, वैसा करेंगे। इस्तीफा देना है या नहीं, यह अभी तय नहीं है। इस तरह अमरवाड़ा सीट पर उप चुनाव होना तय है, जबकि, विजयपुर और बीना में विधायकों द्वारा इस्तीफा देने के बाद ही उप चुनाव का रास्ता साफ होगा। दरअसल जनप्रतिनिधि अधिनियम, 1951 के सेक्शन-151 ए के अंतर्गत सीट रिक्त घोषित होने के छह महीने के अंदर उप चुनाव कराने का प्रावधान है।

उमंग को पीसीसी चीफ के खत का इंतजार


नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार का कहना है कि दलबदलू दोनों विधायकों को नैतिकता के आधार पर तत्काल इस्तीफा दे देना चाहिए। यदि वे ऐसा नहीं कर रहे है, तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दोनों विधायकों को पार्टी से निकालकर मुझे इस सबंध में पत्र भेज दे। मैं उस पत्र को प्रमाणों के साथ स्पीकर को भेज दूंगा।

सब कुछ विधानसभा अध्यक्ष पर निर्भर

विधायकों की सदस्यता के मामले में सब कुछ अध्यक्ष के रुख पर निर्भर होता है। बड़वाह से कांग्रेस विधायक सचिन बिरला ने 24 अक्टूबर 2021 को भाजपा की सदस्यता ले ली थी। उनकी सदस्यता को लेकर कांग्रेस ने विधानसभा अध्यक्ष से शिकायत कर उन्हें अयोग्य घोषित करने की मांग की थी, पर तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष ने यह कहते हुए उनकी शिकायत को अमान्य कर दिया था कि कांग्रेस ने पूरे प्रमाणों के साथ शिकायत नहीं की है। रावत और स्प्रे के मामले में भी अध्यक्ष का रूख ही तय करेगा कि इन विधायकों की सदस्यता बरकरार रहेगी या नहीं।

सप्रे को पार्टी के निर्देश का इंतजार

दलबदल कर भाजपा में शामिल होने वालीं निर्मला सप्रे का कहना है कि, जब सदन चलता है, तब अध्यक्ष को इस्तीफा देना पड़ता है। बाकी पार्टी जैसा निर्देश देगी वे वैसा ही करेंगी। इस्तीफा देना है या नहीं, ये अभी तय नहीं है। उधर, रामनिवास रावत को लेकर कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष जेपी धनोपिया ने दावा किया है कि रामनिवास में इस्तीफा देने का साहस नहीं है। क्योंकि, उन्हें मालूम है कि गलत हो गया है। और भाजपा की सदस्यता लेने के बाद उनकी विधायकी समाप्त होने की आशंका पूरी है।